- 1 फ़र॰ 2025
- Himanshu Kumar
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वित्त मंत्री ने संसद में पेश किया आर्थिक सर्वेक्षण
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी, 2025 को संसद में आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 प्रस्तुत किया। इस दस्तावेज का अर्थशास्त्रियों और नीतिनिर्माताओं द्वारा नजदीकी से अध्ययन किया जाता है, क्योंकि यह नीति निर्धारण के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ बिंदु होता है। यह सालाना सरकारी बजट से पहले प्रस्तुत किया जाता है और इसमें सभी क्षेत्रों के कुल प्रदर्शन का विस्तृत विवरण होता है।
वर्तमान आर्थिक स्थिति का विस्तृत मूल्यांकन
सर्वेक्षण में इस बात पर जोर दिया गया है कि भारत की आर्थिक विकास दर वित्त वर्ष 2025-26 में 6.3% से 6.8% के बीच रह सकती है। यह भविष्यवाणी तेजी से बदलती वैश्विक अर्थव्यवस्था के बीच आर्थिक स्थिरता को ध्यान में रखते हुए की गई है। भारत के वास्तविक जीडीपी विकास के लिए पहले अग्रिम अनुमान में 6.4% की वृद्धि का अनुमान रखा गया है।
जीडीपी वृद्धि और उपभोगशीलता पर प्रभाव
वैश्विक अनिश्चितता और वित्तीय दृष्टिकोण में परिवर्तनशीलता के बावजूद निजी अंतिम खपत व्यय (पीएफसीई) में 7.3% की वृद्धि का अनुमान है। ग्रामीण मांग में पुनरुद्धार इस वृद्धि का मुख्य कारण है। इसके साथ ही, स्थायी कीमतों पर सकल स्थिर पूँजी निर्माण (जीएफसीएफ) में 6.4% की वृद्धि की संभावना है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में स्थिति
सर्वेक्षण बताता है कि वैश्विक मिश्रित खरीद प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) लगातार चौदह महीने बढ़ा है। सेवा क्षेत्र में वृद्धि दर्ज की गई है लेकिन विपरीत तर्ज पर, विनिर्माण पीएमआई में संकीर्णता आई है। इसके साथ ही, सर्वेक्षण ने आर्थिक विकास को बनाए रखने, वित्तीय समावेशन में सुधार करने और रोजगार तथा क्षेत्रीय विकास की चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
रुपये की डॉलर के मुकाबले गिरती कीमत
सर्वेक्षण में यह भी उल्लेख किया गया है कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में गिरावट के कारण कुछ वित्तीय चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। इससे आयात लागत में वृद्धि और मुद्रास्फीति पर संभावित प्रभाव हो सकता है।
सरकार की नीति प्राथमिकताओं का सुझाव
वित्त मंत्री ने संभावित भविष्य के लिए योजनाओं को स्पष्ट करते हुए सरकारी खर्च में रणनीतिक सुधारों पर जोर दिया। इसका उद्देश्य सतत विकास दर को मजबूत करना और लंबी अवधि में वित्तीय स्थिरता प्राप्त करना है।
यह रिपोर्ट आर्थिक मामलों के विभाग के आर्थिक प्रभाग द्वारा तैयार की गई है और इसका अवलोकन मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनन्त नागेश्वरन के निर्देशकत्त्व में हुआ है। यह आर्थिक विशेषज्ञता और डेटा-आधारित विश्लेषण का प्रतीक है जो भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं को व्यापक रूप से समझने के लिए लाभकारी माना जाता है।
12 टिप्पणि
हूँ सोचता हूँ कि ये आंकड़े थोड़े उछाले हुए लग रहे हैं।
वित्त सर्वेक्षण ने कई महत्वपूर्ण बिंदु उठाए हैं। ग्रामीण उपभोग में सुधार से निजी खर्च में बढ़ोतरी अनिवार्य होगी, जिससे जीडीपी को समर्थन मिलेगा। साथ ही, विनिर्माण क्षेत्र में पीएमआई की गिरावट को नीति समर्थन के साथ सुधारा जा सकता है। हमें यह भी देखना होगा कि रुपये की डॉलर के मुकाबले गिरावट आयात लागत को कैसे प्रभावित करेगी। समग्र रूप से, यह रिपोर्ट आर्थिक स्थिरता का एक संतुलित चित्र पेश करती है।
उपर्युक्त आंकड़े थोड़े आदर्शवादी प्रतीत होते हैं। वास्तविकता में, वैश्विक अनिश्चितता को हल्का नहीं आँका जा सकता। यह अनुमान शायद नीति निर्माताओं की आशावादी प्रवृत्ति को दर्शाता है।
डेटा में कई KPIज़ की भाषा थोड़ी टेक-आधारित लग रही है, नोटिंग 📊।
हां, ये KPI वाकई में हमारे लिए आसान समझ में आते हैं 😊। हम मिलकर इन लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं!
इस सर्वे में कई बाते बुनियादी है लेकिन लापरवाही भी दिखती है। कई आंकड़े आधे आधे लगे।
वित्तीय नीति के दायरे में, यह सर्वेक्षण एक बहु-आयामी परिदृश्य का प्रतिरूप प्रस्तुत करता है; यह केवल सरल आंकड़ों के संकलन से परे एक गहन विश्लेषण को उजागर करता है। प्रथम, जीडीपी के संभावित वृद्धि बैंड 6.3% से 6.8% तक का उल्लेख, यह दर्शाता है कि नीति निर्माताओं ने मौद्रिक स्थिरता और विकास के द्वैध लक्ष्य को संतुलित करने की कोशिश की है। द्वितीय, निजी अंतिम खपत व्यय (PFCE) में 7.3% की वृद्धि का अनुमान, ग्रामीण क्षेत्रों के पुनरुद्धार को संकेत देता है, जो कि कृषि उत्पादकता और सूक्ष्म उद्यमों के समर्थन से संभव हो सकता है। तृतीय, स्थायी कीमतों पर सकल स्थिर पूँजी निर्माण (GFCF) में 6.4% की संभावित वृद्धि, बुनियादी बुनियादी बुनाव को सुदृढ़ करने की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है।
चौथा, वैश्विक मिश्रित खरीद प्रबंधक सूचकांक (PMI) का लगातार चौदह महीने तक बढ़ना, यह दर्शाता है कि वैश्विक आर्थिक लहरों में हमारी निर्यात क्षमताओं का विस्तार संभावित है। पाँचवां, सेवा क्षेत्र में वृद्धि और विनिर्माण PMI में संकीर्णता का द्वंद्व, यह बिंदु नीति निर्माताओं को सामरिक उद्योग समर्थन पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करता है। यह द्वैध सिद्धांत, यदि सही ढंग से प्रबंधित किया जाए, तो आर्थिक विविधीकरण को प्रोत्साहित कर सकता है।
षष्ठ, रुपये की डॉलर के मुकाबले गिरावट को लेकर सूचित रहना आवश्यक है; आयात लागत में वृद्धि और संभावित मुद्रास्फीति का दबाव, वित्तीय नीति के भीतर संभावित जोखिम कारक बन सकते हैं। सातवां, सार्वजनिक व्यय में रणनीतिक सुधार, यह संकेत देता है कि सरकारी निवेश को अधिक लक्षित क्षेत्रों में पुनः निर्देशित किया जाना चाहिए, जैसे कि जल अवसंरचना और डिजिटल कनेक्टिविटी।
अष्टम, सामाजिक समावेशन और रोजगार सृजन के लिए उल्लेखित चुनौतियां, यह बताती हैं कि विकास का लाभ सभी वर्गों तक पहुंचना चाहिए। नवम, आर्थिक स्थिरता की निरंतरता को सुनिश्चित करने के लिए वित्तीय नियामक ढांचे को सुदृढ़ करना आवश्यक है, जिससे बाजार की अनिश्चितताओं को कम किया जा सके।
दशम, इस सर्वेक्षण में प्रवर्तित डेटा-आधारित विश्लेषण, यह स्पष्ट करता है कि नीति निर्णयों में वैज्ञानिक पद्धति को अपनाया गया है, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही में वृद्धि होगी। अतः, यह दस्तावेज़ केवल एक रिपोर्ट नहीं, बल्कि एक रणनीतिक रोडमैप है, जो भारत की आर्थिक दिशा को पुनःसंरचित करने की क्षमता रखता है।
ज्यादा तकनीकी शब्दावली से आम पाठक भ्रमित हो सकता है लेकिन सार स्पष्ट है
इह सर्वे साच मा बड़का झकझोर देता ह। टैक्स ए रिफिन ए बहुत बवाल, गमछा छोड़ि दा।
सभी आंकड़े शुद्ध नैतिकता के साथ देखे जाने चाहिए। विकास तभी सार्थक है जब सभी को समान अवसर मिले।
क्या आप लोग नहीं देख रहे कि इस सर्वे में गुप्त रूप से विदेशी लोन के झूठे आँकड़े शामिल हैं? यह एक व्यवस्थित योजना हो सकती है जो हमारी वित्तीय स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचाएगी।
आपके चिंतन को धन्यवाद। सर्वेक्षण का उद्देश्य केवल आर्थिक आँकड़े नहीं, बल्कि नीति निर्माण में पारदर्शिता को बढ़ावा देना है। आपके द्वारा उठाए गए प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए, हमें आगे की जांच और साक्ष्य-आधारित विश्लेषण की आवश्यकता होगी।