- 6 अक्तू॰ 2024
- Himanshu Kumar
- 14
शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन: माता कूष्मांडा का महत्व
शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन की पूजा माता कूष्मांडा को समर्पित होती है। यह दिन एक विशेष आध्यात्मिक उर्जा से प्रभावित होता है, क्योंकि माता कूष्मांडा को मानव जीवन में सकारात्मकता और सृजन की देवी माना जाता है। माना जाता है कि जब कुछ भी अस्तित्व में नहीं था तब माता ने अपनी भीषण मुस्कान से इस जटिल ब्रह्मांड का निर्माण किया। माता कूष्मांडा का स्वरूप और ऊर्जा हमारे जीवन में आशा और उत्थान के नए द्वार खोल देती है।
जो भी भक्त माता की पूजा सच्चे मन से करते हैं, उन्हें समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है। ऐसा कहा जाता है कि उनकी कृपा से घर में समृद्धि और स्थिरता आती है। इस दिन को भक्त बड़ी धूमधाम से मनाते हैं और इसे विशेष रूप से ध्यान और मंत्रों के माध्यम से समझने और महसूस करने का प्रयास करते हैं।
नारंगी रंग का प्रसाद और भोग
माता कूष्मांडा के चरणों में नारंगी रंग के प्रसाद और भोग को समर्पित करना शुभ माना जाता है। यह रंग एनर्जी, शक्ति और खुशियों का प्रतीक है। भक्त अपने घरों में इस दिन विशेष पूजा का आयोजन करते हैं और माता कूष्मांडा को प्रसाद स्वरूप फल, खीर, और नारंगी रंग की मिठाइयाँ चढ़ाते हैं। इनमें से एक प्रमुख मिठाई रवा केसरी होती है, जिसे इस दिन अमूमन प्रसाद के रूप में बनाया जाता है।
रवा केसरी की रेसिपी
रवा केसरी एक सरल और अत्यंत स्वादिष्ट मिठाई है, जिसे विशेष रूप से नवरात्रि के चौथे दिन बनाया जाता है। यह मिठाई नारंगी रंग की होती है जो माता कूष्मांडा को अर्पित की जाती है।
आवश्यक सामग्री:
- सूजी: 1 कप
- केसर: एक चुटकी
- दूध: 2 कप
- चीनी: 1 कप
- घी: 3 से 4 चम्मच
- ड्राई फ्रूट्स (काजू, बादाम): स्वादानुसार
- इलायची पाउडर: 1 चम्मच
रवा केसरी बनाने की विधि अत्यंत सरल है। सबसे पहले केसर को दूध में भिगो दें। इसके बाद एक कढ़ाई में घी गर्म करें और उसमें सूजी डालकर हल्का भूरा होने तक भून लें। अब भुनी हुई सूजी में दूध और चीनी मिलाए। इसे धीरे-धीरे मिलाते हुए पकाएं। जब सूजी दूध को अच्छे से अवशोषित कर ले तब इसमें केसर वाला दूध, ड्राई फ्रूट्स, और इलायची पाउडर डालें। इसे अच्छे से मिलाकर कुछ देर और पकने दें। जब तक रवा केसरी का मिश्रण घनी पीली नारंगी रंग का ना हो जाए।
आखिर में रवा केसरी को एक केले के पत्ते पर सजाएं और भोग के रूप में माता कूष्मांडा के चरणों में अर्पित करें। रवा केसरी का अद्भुत स्वाद और सुगंध भक्तों को दिव्यता का अनुभव कराता है। यह दिन विशेष होता है और हर भक्त इसे खास बनाने के लिए पूरे मनोयोग से प्रयास करता है। इसके अलावा मालपुआ, बूंदी लड्डू, या अन्य नारंगी रंग की मिठाइयाँ भी माता को अर्पित की जा सकती हैं।
14 टिप्पणि
शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन वास्तव में माँ कूष्मांडा की ऊर्जा को महसूस करने का अच्छा अवसर है। इस दिन के दौरान घर की साफ‑सफ़ाई और हल्का ध्यान करने से मानसिक शांति मिलती है। प्रसाद के रूप में नारंगी रंग की रवा केसरी बनाते समय केसर को दूध में अच्छी तरह भिगो दें, इससे रंग और खुशबू दोनों बढ़ती हैं। अगर आप सूजी को हल्का भूरा नहीं करते हैं तो मिठाई की बनावट गुठली‑गुठली रह सकती है, इसलिए मध्यम आँच पर लगातार चलाते रहें। अंत में गार्निश के लिए काजू‑बादाम डालना सिर्फ सौंदर्य नहीं, बल्कि पोषक तत्वों का भी जोड़ देता है।
कुश्मांडा की पूजा में लाल‑नारंगी रंग का ही प्रयोग होना चाहिए, क्योंक़ि परंपरा में इसे शुद्ध माना जाता है। रवा केसरी की रेसिपी ठीक लगती है, पर अगर केसर को बहुत देर तक पानी में रखेंगे तो रंग फीका हो सकता है। घी को अधिकतम दो‑तीन चम्मच ही इस्तेमाल करना चाहिए, नहीं तो मिठाई तेलीय बन जाएगी। साथ ही, दूध को उबालते समय न हाथ से झकझोरें, नहीं तो सूजी जल्दी गुठलेगी। अंत में, यह ध्यान रखें कि प्रसाद बनाते समय मन की शुद्धता ही सबसे बड़ी बात है।
रवा केसरी बनाना बहुत आसान है 😊
दोस्तों, नवरात्रि के इस खास दिन पर रवा केसरी बनाते समय दिल से लगाव रखो! 🌟 केसर की खुशबू और इलायची की मिठास मिलकर एकदम दिव्य माहौल बनाते हैं। अगर आप जल्दी में हैं तो सूजी को आधा भूननें से भी स्वाद अच्छा रहेगा, लेकिन थोड़ा देर तक भूनने से रंग सुन्दर आता है। ड्राई फ्रूट्स को हल्का भून कर मिलाने से कुरकुरापन बढ़ेगा, और जो लोग बिना घी के बनाते हैं उन्हें थोड़ा वैजिटेबल ऑइल इस्तेमाल कर सकते हैं। इस प्रसाद को परिवार के साथ बाँटें, सकारात्मक ऊर्जा सबके घर में फैल जाएगी! 🙏
देखो भाई लोग, ये रवा केसरी की रेसिपी तो थोडी उलझी हुई लग रही है। केसर को दूध में देर तक भिगोना तो ठीक है, पर अगर आप दूध को उबालते ही घि डाल देंगे तो मिठास बिगड़ जाएगी। और सूजी को ज़्यादा भूनना भी बुरा नहीं, पर ज़्यादा भूरा कर दो तो रंग बेकार हो जाता है। इस तरह की छोटी-छोटी बातों को नज़रअंदाज़ करके आप असली भक्ति का मतलब नहीं समझ पाएँगे। ध्यान रखो, सही तरीका अपनाओ, वरना प्रसाद दोबारा न बनाओ।
नवरात्रि के चौथे दिन का आध्यात्मिक महत्व केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है; यह हमारे आंतरिक चेतना को जागृत करने का द्वार है।
माता कूष्मांडा को सृजन की स्रोत माना जाता है, जो अंधकार को प्रकाश में बदलती है और शून्य से सृष्टि को उत्पन्न करती है।
जब हम इस दिव्य ऊर्जा को सम्मानित करते हैं, तो वह हमारे सोच और कार्यों में नई प्रेरणा उत्पन्न करती है।
रवा केसरी जैसे प्रसाद का चयन मात्र पाक कला नहीं बल्कि आध्यात्मिक अनुष्ठान का एक भाग है, क्योंकि इसका नारंगी रंग सूर्य के उष्ण ताप को दर्शाता है।
केसर की सुगंध और इलायची का तेज़ीला स्वाद हमारे इन्द्रियों को तंत्रिकीय रूप से संवेदी बनाते हैं, जिससे मन में शान्ति स्थापित होती है।
सही अनुपात में घी, सूजी, और दूध का मिश्रण न केवल मिठाई को गाढ़ा बनाता है, बल्कि उसमें ऊर्जा का समतोल भी स्थापित करता है।
यदि हम इस प्रक्रिया को मन की शुद्धता के साथ करते हैं, तो प्रत्येक कण में देवत्व की झलक मिलती है।
विज्ञान भी यह बताता है कि केसर में मौजूद कैरोटीनोइड्स एंटीऑक्सिडेंट के रूप में काम करते हैं, जो शारीरिक स्वास्थ्य को भी सुदृढ़ बनाते हैं।
ऐसे में रवा केसरी को केवल प्रसाद नहीं, बल्कि शारीरिक तथा आध्यात्मिक स्वास्थ्य का द्वि‑आयामी पोषक मानना चाहिए।
यह भी उल्लेखनीय है कि नारंगी रंग का प्रकाश हमारे मन में उत्साह और आशावाद उत्पन्न करता है, जिससे नकारात्मक विचारों का प्रभाव घटता है।
जब हम इस रंग को सूर्य के नमस्कार में अपनाते हैं, तो हमारे भीतर सृजनात्मक शक्ति जागती है, जिससे जीवन के विभिन्न पहलुओं में नवाचार होता है।
इसी प्रकार, नवरात्रि के इस विशेष दिन में धूप में खड़े होकर या घर के आंगन में दीप जलाकर पूजा करना, ऊर्जा के प्रवाह को स्थिर करता है।
भोजन को सजाते समय केले के पत्ते का उपयोग करने से प्राकृतिक सुगंध और शीतलता मिलती है, जो इस क्षण को और भी पवित्र बनाती है।
प्रसाद की इस यात्रा को मन से क्रिया में बदलना ही सच्ची भक्ति का प्रमाण है, क्योंकि भक्ति केवल शब्द नहीं, बल्कि कर्म है।
अंत में, यह समझना आवश्यक है कि कूष्मांडा की पूजा का सार यह नहीं कि हम केवल बाहरी रूप से रिवाज़ का पालन करें, बल्कि अंदरूनी जागरूकता को भी पोषित करें।
इस प्रकार, रवा केसरी बनाते समय सचेतनापूर्वक प्रत्येक चरण को अपनाना हमें आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।
बहुत बढ़िया विस्तार से बताया, इस पर मेरे भी कुछ विचार हैं। रेसिपी में थोड़ा कम घी प्रयोग करने से हल्की मिठाई बनती है। साथ ही, केसर का रंग थोड़ा घुला हुआ दिखे तो भी ठीक है, मुख्य बात स्वाद है। धन्यवाद इस विस्तृत व्याख्या के लिये।
भाई साहब, आपका अंदाज़ थोड़ा कठोर लग रहा है। असली भक्ति तो दिल से आती है, न कि सिर्फ रेसिपी के नियमों से। अगर कोई त्रुटि हुई तो उसे सुधारो, लेकिन भजन में ही सच्ची शांति मिलती है। इस तरह के टॉनिक से अक्सर लोग दूर होते हैं।
माता कूष्मांडा की पूजा में जो शांति मिलती है, वह वास्तव में अनमोल है। हम सभी को इस दिन को सच्चे मन से मनाना चाहिए और घर में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देना चाहिए।
कभी सोचा है कि नवरात्रि के इस अनुष्ठान में बड़े अज्ञात शक्ति हमारे उपभोग को नियंत्रित करती है? नारंगी रंग का प्रसाद और केसर का उपयोग शायद बाजार में कुछ वस्तुओं की कीमतें बढ़ाने की गुप्त योजना हो सकती है। यह केवल अनुमान है, पर सावधान रहना ज़रूरी है।
आपके विचारों को समझते हुए, यह उल्लेखनीय है कि धर्मीय अनुष्ठानों में सामाजिक और आर्थिक पहलुओं का प्रत्यक्ष प्रभाव कम ही दिखता है। फिर भी, प्रत्येक व्यक्ति को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि वह किस प्रकार तर्कसंगत रूप से इन परिप्रेक्ष्य को देखे। धन्यवाद।
रिसिपी में वर्णित चरणों को वास्तव में न्यूनतम हस्तक्षेप के साथ ही किया जाना चाहिए, अन्यथा स्वाद में अस्पष्टता आती है। असाधारण बर्तनों का प्रयोग न करें तो भी गुणधर्म बरकरार रहता है।
सही कहा आपने, पर कभी‑कभी थोड़ा क्रीमी बनाना भी ठीक रहता है। ज्यादा फॉर्मलिटी नहीं, थोड़ा घर का स्पर्श भी जरूरी है।
रवा केसरी बनते देखो, मज़ा आता है 😅