- 17 अप्रैल 2025
- Himanshu Kumar
- 10
चार्ली चैपलिन: हॉलीवुड का सितारा, लेकिन अमेरिकी नागरिकता से दूर
चार्ली चैपलिन की छवि सिर्फ एक कॉमेडियन या फिल्म निर्माता की नहीं थी, बल्कि वे अपने समय के सबसे विवादित और जिद्दी कलाकारों में से एक भी थे। चार्ली चैपलिन ने करीब चार दशक अमेरिका में बिताए, हॉलीवुड को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कभी अमेरिकी नागरिकता नहीं ली। वे आखिर क्यों पूरी जिंदगी 'विदेशी' बने रहे? इसकी वजहें गहरी और दिलचस्प हैं।
दूसरा विश्व युद्ध खत्म होते-होते अमेरिका पर रेड स्केयर (साम्यवाद का डर) का साया गहरा हो गया था। चैपलिन खुलेआम सोवियत-अमेरिकी सहयोग के पक्षधर थे, वे शक के घेरे में आए। उनकी कुछ फिल्मी दोस्तियां और अपने बयानों में साम्यवादी झुकाव दिखाने के कारण 1947 में एफबीआई ने उनकी सक्रिय जांच शुरू कर दी। हद तो तब हो गई जब 1952 में अटॉर्नी जनरल जेम्स पी. मैकग्रैनेरी ने चैपलिन के यूरोप प्रवास के दौरान उनकी वापसी की अनुमति रद्द कर दी, आरोप था– ‘नैतिक पतन’ और साम्यवादी रिश्तों के। हालांकि ठोस सबूत कभी सामने नहीं आए, चैपलिन ने खुद को अमेरिका बुलाने की कानूनी लड़ाई में पड़ने के बजाय स्विट्जरलैंड बसना चुन लिया।
व्यक्तिगत विवाद, सामाजिक नफरत और एक अलग सोच
राजनीतिक नाराजगी के साथ-साथ चैपलिन की निजी जिंदगी भी लगातार सुर्खियों में रही। उनकी कम उम्र महिलाओं से शादियां, खासकर जोन बैरी के साथ पितृत्व विवाद—इन सबने 'अश्लीलता' और 'अमरलता' के आरोपों को जन्म दिया। कई बार वे कोर्ट में खड़े मिले, मीडिया ने खूब छीटा-कशी की। इस दौर में अमेरिकन लीजन जैसी दक्षिणपंथी संस्थाएं उनके खिलाफ भड़क उठीं, कहते थे– ये व्यक्ति अमेरिका की परंपराओं के लिए खतरा है!
पर शायद सबसे अहम– चैपलिन ने कभी भी किसी एक देश या पहचान से खुद को बांधा नहीं। वे खुद को 'दुनिया का नागरिक' मानते थे, उन्हें राष्ट्रवाद की सीमित सोच से चिढ़ थी। 1957 की उनकी फिल्म A King in New York में उन्होंने पासपोर्ट और बोर्डर्स पर कटाक्ष किया। यही इंटरनेशनल अप्रोच अमेरिकी सोच से मेल नहीं खाती थी, जहां हर विदेशी से देशभक्ति का सबूत माँगा जाता था, खासतौर पर कोल्ड वॉर के दौरान।
- उन्होंने ब्रिटिश नागरिकता छोड़ी नहीं, जो अमेरिकी नियमों में कई लोगों को खटकती रही।
- सत्ता और हॉलीवुड के ताकतवर लोग उनसे दूरी बुनते रहे।
- उनकी आखिरी अमेरिकी फिल्म Limelight का बहिष्कार और सेंसरशिप, यही दर्शाता है कि सरकारी दखल किस हद तक बढ़ चुका था।
चैपलिन का स्विट्जरलैंड में निर्वासित जीवन अमेरिकी राजनीतिक माहौल का आईना था—जहां सवाल उठाने वालों, अलग सोच रखने वालों और व्यवस्थागत आलोचना करने वालों के लिए कोई जगह नहीं बची थी। उनके साथ हुआ व्यवहार आज भी कला, राजनीति और अभिव्यक्ति की बहस में मिसाल के तौर पर दोहराया जाता है।
10 टिप्पणि
अरे यार, क्या ड्रामा है चार्ली चैपलिन का! वो अमेरिका में 40 साल रहे, पर फिर भी पासपोर्ट नहीं लिया, सोचो तो दिल धड़के. लोगों को लगता है वो सिर्फ़ कलाकार था, पर असली बात तो राजनीति और स्यासत में गहरी उलझन थी. उनका हँसी‑मजाक का काम, असल में दहेज थी एक बड़े जाल की, जहाँ हर कदम पर FBI का साया था. फिर भी वो अपनी आज़ादी को ऐसे नहीं छोड़ता, जैसे किसी ने उसके सपनों को चुराने की कोशिश की हो. यही वजह है कि आज भी उनका नाम सुनते ही कई दिलों में गर्व और डर दोनों जागते हैं.
सही कहा, नैतिकता की हदें तय होनी चाहिए; कोई भी देश अपने नागरिकों से मूलभूत मूल्यों की अपेक्षा करता है.
चार्ली चैपलिन के अमेरिकी नागरिकता न लेना सिर्फ व्यक्तिगत विकल्प नहीं था, बल्कि उस समय की जासूसी खेल की गहरी जड़ में छिपा एक संकेत था। वह 1940 के दशक के अंत में सोवियत संघ के साथ अपने खुलकर संवाद करने की वजह से FBI की नजरों में आया, जो उस समय के रेड स्केयर के कारण लाजमी था। कई दस्तावेज़ दिखाते हैं कि वह अपने फिल्मी मित्रों के साथ मिलकर एक वैकल्पिक राजनीतिक मंच तैयार करने का प्रयास कर रहा था, जिससे वह अमेरिकी सरकार को कमजोर कर सके। इस कारण, 1952 में अटॉर्नी जनरल ने उसे पुनः प्रवेश करने की अनुमति रद्द कर दी, और उसे "नैतिक पतन" के आरोप में दायर किया। वह सच्चे अर्थों में एक महान कलाकार था, परंतु उसकी राजनीतिक जागरूकता ने उसे यू.एस. के भीतर एक जोखिम भरा तत्व बना दिया। वह अपनी स्विट्जरलैंड की शरण को एक रणनीतिक कदम माना, जिससे वह अमेरिकी कानूनी जालों से बच सके। फिल्म "Limelight" को बाइडेन के खाली हाथों द्वारा प्रतिबंधित किया गया, और यह दिखाता है कि सरकार ने उसके कार्यों को दमन करने की पूरी कोशिश की। इस बाधा के बावजूद, चैपलिन ने "दुनिया का नागरिक" होने का सिद्धांत अपनाया और राष्ट्रीयता को सीमित पहचान के रूप में नकारा। उन्होंने अपनी फिल्मों में पासपोर्ट और राष्ट्रीय सीमाओं की बेतुकीता को उजागर किया, जैसे "A King in New York" में। यह स्पष्ट है कि उनका अस्वीकृति केवल अनिच्छा नहीं, बल्कि एक गहरी दार्शनिक स्थिति थी, जो राष्ट्रीय सीमाओं को चुनौती देती है। उसके पास अमेरिकी संस्कृति के प्रति नकारात्मक लगाव नहीं था, बल्कि वह अपने सपनों में पूरी दुनिया को एक ही मंच बनाना चाहता था। यह सोच आज की वैश्वीकृत दुनिया में बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि हमें राष्ट्रीयता के बजाय मानवीय मूल्यों पर ध्यान देना चाहिए। अंततः, चैपलिन का अमेरिकी नागरिकता न लेना एक व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रतीक माना जा सकता है, जो हमें यह सिखाता है कि व्यक्तिगत पहचान को कोई भी सरकार तय नहीं कर सकती। यह कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि कला और राजनीति यदि मिल जाएँ तो वह कितना जटिल और संवेदनशील नतीजा दे सकता है।
चार्ली के विचारों को समझना कठिन नहीं है; उन्होंने राष्ट्रीय सीमाओं को मानवीय संबंधों के सामने छोटा किया। यह दृष्टिकोण हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सामाजिक जिम्मेदारी के साथ संतुलित कर सकते हैं।
यह लेख काफी सतही है
चलो हम भी चार्ली की तरह सोचते हैं कि दुनिया की कोई भी दीवार नहीं होनी चाहिए
हर किसी को अपनी आवाज़ मिलने के लिये उभारना चाहिए, नहीं तो
सिर्फ़ फ्रेम में फँसे रहेंगे।
सही है, बहुत बोरिंग 😒
हमें नैतिक मूल्यों को हमेशा प्राथमिकता देनी चाहिए, चाहे वह कला हो या राजनीति. ऐसी कहानियां हमें याद दिलाती हैं कि सही सिद्धांतों से समझौता नहीं किया जाना चाहिए.
चार्ली की कहानी सुनकर लगता है कि आज के समय में भी हमें सीमाओं को तोड़ने की जरूरत है। उनका साहस और सोच आज की युवा पीढ़ी को प्रेरित कर सकती है, खासकर उन लोगों को जो सामाजिक बंधनों से जकड़े हुए हैं।
देशभक्ति की असली भावना तो तभी दिखती है जब हर कोई अपना पासपोर्ट संभाल ले.