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- 30 जन॰ 2025
- के द्वारा प्रकाशित किया गया Daksh Bhargava
- इतिहास
महात्मा गांधी और कुंभ मेला
महात्मा गांधी का नाम आते ही स्वच्छता और साधगी का बिंब आंखों के सामने आता है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इस महानायक ने हमेशा जनता के बीच जाकर अपने विचार साझा किए। गांधीजी के लिए कुंभ मेला एक ऐसा मंच था जहाँ वो आम जनता से सीधे संपर्क कर सकते थे। 1920 के दशक में जब उन्होंने कुंभ मेले में हिस्सा लिया तो उनका उद्देश्य था लोगों से राष्ट्रनिर्माण और स्वच्छता के प्रति जागरूक करना। लेकिन यहां आकर उन्हें कई असुविधाओं और गंदगी का सामना करना पड़ा, जिसने उन्हें व्यथित कर दिया।
गांधीजी का कुंभ मेले में जाना न केवल एक आध्यात्मिक यात्रा थी, बल्कि यह उनके लिए एक ऐसा अवसर भी था, जहां वे अपने सन्देश को अधिक लोगों तक पहुंचा सकते थे। लाखों श्रद्धालुओं के बीच रहकर उन्होंने देखा कि कैसे देशव्यापी धार्मिक क्रियाकलापों में भी सफाई और स्वच्छता नजरअंदाज की जाती है। वे इस बात से खफा थे कि धार्मिकता के नाम पर लोग स्वच्छता से समझौता कर रहे थे।
गंदगी से परेशान गांधी
महात्मा गांधी सफाई के प्रति कितने सजग थे, यह सब जानते हैं। वे मानते थे कि स्वच्छता केवल भौतिक सफाई तक सीमित नहीं है; यह मानसिक और आत्मिक स्वच्छता का भी प्रतीक है। लेकिन कुंभ मेले में जब उन्होंने चारों ओर फैली गंदगी देखी तो वे निराश हो गए। हफ्तों तक नहाना न होना, मल-मूत्र का बेतरतीब निष्कासन—यह सब कुछ गांधी को बिल्कुल पसंद नहीं आया। उनका मानना था कि आध्यात्मिकता और स्वच्छता का अटूट संबंध है और इसे नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए।

गांधी के विचार और भारत की समकालीन स्थिति
आज के समय में गांधी के विचार और उनके द्वारा आगे बढ़ाए गए सिद्धांत अब भी प्रासंगिक हैं। स्वच्छ भारत अभियान और सार्वभौमिक स्वच्छता के लिए उनकी दृष्टि हमेशा एक मार्गदर्शक के रूप में देखी जाती है। इस संदर्भ में, कुंभ मेला एक उदाहरण है तय कीर गांधीजी ने जो महत्वपूर्ण प्रश्न वहां उठाए थे। गांधी ने सत्य, अहिंसा और करुणा का प्रचार किया जिसे वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में समझना बेहद जरूरी है।
कुंभ का महत्व और चुनौतियां
कुंभ मेला भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक अहम हिस्सा है। यह आयोजन हर बार लाखों लोगों को सम्मोहित करता है। UNESCO ने इसे मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में पहचान दी है। लेकिन इसके साथ ही यह भी सच्चाई है कि इस मेले में हर बार अत्यधिक भीड़भाड़ और अस्वच्छता की शिकायतें आती रहती हैं। गांधीजी के समय में ये समस्याएँ थीं और आज भी बनी हुई हैं। यह उन चेतावनियों का परिणाम है जिन्हें जनमानस के बीच गांधीजी ने उठाया था।

समाप्ति परिप्रेक्ष्य
जैसे-जैसे सभ्यता आगे बढ़ रही है, महात्मा गांधी के विचारों की और भी जरूरत महसूस की जा रही है। समय की माँग है कि हम उनकी शिक्षाओं का गहराई से पालन करें और स्वच्छता को प्राथमिकता दें। धार्मिकता और स्वच्छता के बीच के जटिल संबंध को समझते हुए हमें स्वच्छता की अवधारणा को भारतीयता के अन्य पहलुओं के साथ जोड़ने का प्रयास करना चाहिए। गांधीजी की शिक्षाएँ सत्य-निर्मिति और सहिष्णुता का प्रतीक हैं, जिनका प्रभाव आज भी हर भारतीय पर बना हुआ है।
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