- 24 सित॰ 2024
- Himanshu Kumar
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अनुरा कुमारा डिसनायके बने श्रीलंका के नये राष्ट्रपति
श्रीलंका ने अपने नए राष्ट्रपति के रूप में अनुरा कुमारा डिसनायके का स्वागत किया है। डिसनायके, जो कि एक मार्क्सवादी विचारधारा वाले नेता हैं, ने प्रमुखता से चुनाव में विजय प्राप्त की है। उन्होंने 5.6 मिलियन वोट हासिल किए, जो कुल मतों का 42.3% है। यह स्पष्ट संकेत है कि जनता उनके भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई और आर्थिक सुधार की दिशा में प्रयासों का समर्थन कर रही है।
चुनाव परिणामों के अनुसार, डिसनायके ने निवर्तमान राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे और विपक्षी नेता सजीथ प्रेमदासा को पीछे छोड़ते हुए पहला स्थान हासिल किया। विक्रमसिंघे, जिन्होंने बीते साल आर्थिक संकट के बाद से देश को सँभालने का काम किया था, को केवल 17% वोट मिले। उनकी आर्थिक स्थिरता के लिए उठाए गए कठोर कदम उनकी पुनः नियुक्ति में बाधा बने। वहीं, सजीथ प्रेमदासा ने 32.8% वोट हासिल किए और दूसरे स्थान पर रहें।
चुनाव का ऐतिहासिक महत्व
इस चुनाव की एक विशेषता यह भी रही कि यह श्रीलंका के इतिहास में पहला ऐसा चुनाव था जिसमें किसी उम्मीदवार को सीधे 50% वोट नहीं मिले। इसके कारण दूसरी बार मतगणना की आवश्यकता पड़ी। अंत में, डिसनायके ने भारी बहुमत से जीत हासिल की। वे 23 सितंबर सोमवार को राष्ट्रपति सचिवालय में सादे समारोह में राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे।
नवीन नीति और चुनौतियाँ
डिसनायके ने अपनी पार्टी National People's Power (NPP) के बैनर तले चुनाव लड़ा, जिसमें उनकी Janatha Vimukthi Peremuna (JVP) पार्टी भी शामिल है। JVP पारंपरिक रूप से राज्य के अधिक हस्तक्षेप और बंद बाजार आर्थिक नीतियों का समर्थन करती रही है। अपनी चुनावी घोषणापत्र में, डिसनायके ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के $2.9 बिलियन बेलआउट के हिस्से के रूप में कर्ज पुनर्गठन कार्यक्रम को पुनः रेखांकित करने और करों को कम करने की योजना का उल्लेख किया।
हालांकि, इन संभावित नीतियों ने निवेशकों और बाजार भागीदारों के बीच चिंताएं उत्पन्न की हैं। डिसनायके ने अपने चुनावी भाषणों में एक संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाते हुए कहा कि किसी भी परिवर्तन को IMF के साथ परामर्श करके किया जाएगा और उन्होंने कर्ज की चुकौती सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता जताई।
परिवर्तन के प्रतीक
चुनावी अभियान के दौरान, डिसनायके ने खुद को परिवर्तन के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने सत्ता में आने के 45 दिनों के भीतर संसद को भंग करने और अपनी नीतियों के लिए एक ताजे जनादेश की मांग करने का वादा किया।
डिसनायके के पास अपने कुछ प्रतिद्वंद्वियों की तरह राजनीतिक विरासत नहीं थी, लेकिन उनके वामपंथी नीतियां और महत्वपूर्ण भाषणों ने उन्हें श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में अग्रणी उम्मीदवार बना दिया।
लंबा राजनीतिक सफर
कोलंबो के सेंटर फॉर पॉलिसी अल्टरनेटिव्स के वरिष्ठ शोधकर्ता भवानी फोन्सेका ने नोट किया कि डिसनायके लंबे समय से राजनीति में हैं और कोई नवागंतुक नहीं हैं। उनका आत्मविश्वास और नयेपन की तलाश में लोगों के लिए उनकी अपील ने उन्हें जनता से जुड़ने में मदद की। उनकी पार्टी JVP ने 1971 और 1988 में दो असफल विद्रोहों का नेतृत्व किया था, जिसमें हजारों लोगों की मृत्यु हुई थी।
तब से, पार्टी ने मुख्यधारा की राजनीति को अपनाया है। डिसनायके, जो उस समय पार्टी के नेता नहीं थे, ने हाल के वर्षों में उन विद्रोहों पर कोई टिप्पणी नहीं की है।
देखने वाली बात यह होगी की डिसनायके की नीतियां कैसे श्रीलंका की बिगड़ी आर्थिक स्थिति को सुधारने में मदद करती हैं और उनकी मारकसवादी विचारधारा के तहत जनता को क्या नई उम्मीदें मिलती हैं।
15 टिप्पणि
वास्तव में ये चुनाव एक नई दिशा का संकेत है। डिसनायके की जीत से लोगों की निराशा में थोड़ी राहत मिलने की आशा है। सरकार के आर्थिक कदमों से आम जनता को सीधे असर हुए हैं, इसलिए बदलाव जरूरी था। अब देखना पड़ेगा कि वह अपने वादे को कितनी मेहनत से पूरा कर पाते हैं।
साथ ही, इस बदलाव से पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते भी नई दिशा में जा सकते हैं।
ये सरबरोर बड़ू (भाड़ी) है! हमारे धेस में अचरज नहीं कि मार्क्सवादी लोग इधर-उधर गड़बड़ करेंगे। अगर IMF के साथ खेलते-खेलते देश को नुकसान पहुंचा, तो कौन जिम्मेदार ठहराएगा? हस्पताल में बिनसरकारी मदद मिलना चाहिए, न कि विदेशी बॉस के आदेशों से।
इसी लिए मैं कहता हूँ, हमारे लिये सख्त कदम जरूरी हैं!!
वास्तव में, डिसनायके ने बहुत मेहनत की, और लोगों ने भी भरोसा किया। बहुत सारे लोग आशा कर रहे हैं, कि नई नीतियां आर्थिक स्थितियों को सुधारेँगी। लेकिन, सावधानी भी बरतनी चाहिए, क्योंकि बदलते समय में जोखिम भी होते हैं।
हमें देखना होगा, कि वह अपने वादे को कितनी जल्दी और सही ढंग से लागू करते हैं।
मैं मानता हूँ कि कोई भी नेता पूर्ण नहीं होता, पर हमें एकजुट होकर देश की प्रगति पर फोकस करना चाहिए। विभिन्न विचारधाराओं का संतुलन बनाए रखना जरूरी है, ताकि सामाजिक शांति बनी रहे। आशा करता हूँ कि नई सरकार सभी वर्गों के हितों को ध्यान में रखेगी।
शांति और विकास साथ-साथ चल सकते हैं, यह हमारा मानना है।
क्या यह सब एक बड़ी साज़िश नहीं है?!! विदेशियों ने इस चुनाव को नियंत्रित करने के लिए काली धनराशियों का इस्तेमाल किया है!!! डिसनायके की जीत के पीछे छिपे आर्थिक लाभों का कोई अनुमान नहीं। हमें सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि यह कदम हमारे राष्ट्रीय संप्रभुता को खतरे में डाल सकता है।
सभी को जागरूक रहना चाहिए!!!
डिसनायके जी ने कहा कि IMF के साथ मिलकर कर्ज का पुनर्गठन किया जाएगा, लेकिन वास्तविकता में यह बहुत कठिन होगा। हमें यह समझना चाहिए कि विदेशी ऋण का बोझ आसान नहीं है, और इसे कम करने के लिए सजग योजना बनानी पड़ेगी। साथ ही, करों में कमी लाने के प्रस्ताव से सरकारी राजस्व पर असर पड़ सकता है, जिससे विकास कार्यों में बाधा आएगी।
यदि जनता को असली लाभ चाहिए, तो यह जरूरी है कि सरकार पारदर्शी रूप से काम करे और सभी कदमों को सार्वजनिक करे। अंत में, यह कहा जा सकता है कि परिवर्तन जरूरी है, पर वह परिवर्तन सावधानी से होना चाहिए।
अभी अभी सुना कि अनुरा कुमारा डिसनायके ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली, यह खबर देश के हर कोने में गूँज रही है।
पहली बार एक मार्क्सवादी विचारधारा वाले नेता ने इस पद को संभाला, जो इतिहास में एक बड़ी घटना है।
उनका चुनावी वादा था कि भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म किया जाएगा, और सभी नागरिकों को समान अधिकार मिलेगा।
वो कहते हैं कि IMF के साथ मिलकर कर्ज का पुनर्गठन किया जाएगा, जिससे आर्थिक संकट अंततः घटेगा।
हालांकि, बाजार के विशेषज्ञ उत्सुक हैं कि ऐसी नीतियों से निवेशकों का भरोसा कैसे जुड़ता है।
पहले ही बताया गया है कि वे करों को घटाने की योजना बना रहे हैं, जिससे आम जनता को राहत मिल सकती है।
पर यह भी कहा गया है कि इस कदम से सरकारी राजस्व में कमी आ सकती है, जो विकास कार्यों को प्रभावित कर सकता है।
दिसनायके ने संसद को भंग करने और नई जनादेश की माँग की है, जो राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ा सकता है।
समुदाय के कई प्रमुख नेता इस पहल को लेकर शंका व्यक्त कर रहे हैं, लेकिन लोग आशावादी भी हैं।
भवानी फोन्सेका का कहना है कि उन्होंने लंबे समय तक राजनीति में सक्रियता दिखाई है, जिससे उनकी नीतियों में अनुभव का प्रमाण है।
जैविक कृषि, सामाजिक सुरक्षा, और शिक्षा में सुधार के वादे भी उनकी घोषणापत्र में शामिल हैं।
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न दायरों से प्रतिक्रियाएँ मिल रही हैं, कुछ समर्थन में और कुछ विरोध में।
यदि वे अपने वादों को सच्चे दिल से निभाते हैं, तो श्रीलंका को आर्थिक पुनरुत्थान का मार्ग मिल सकता है।
लेकिन यदि नीतियों में अकारण बदलाव होते रहे, तो असंतोष और विरोध का बवंडर उत्पन्न हो सकता है।
अंत में, यह समय है कि सभी वर्ग मिलकर इस नई शुरुआत को सफलता की ओर ले जाने में सहयोग करें।
बहुत बढ़िया विश्लेषण, लेकिन एक बात याद रखिए - नीतियों को लागू करने में समय लगेगा, इसलिए धैर्य जरूरी है। सरकार को चाहिए कि वह पहले प्राथमिकताओं को स्पष्ट करे, ताकि जनता को भी पता चले कि कौन से कदम पहले उठाए जाएंगे।
वर्ना, बहुत जल्दी में किया गया कोई भी कदम उल्टा पड़ सकता है!!!
बिलकुल सही! 😊
हिंदुस्तान की शक्ति!
आइडियोलॉजी के पीछे के सच्चे माचिसों को देखना चाहिए। डिसनायके की बड़ाई करना बस एक बड़ी धोखा है, और इस देश को आगे ले जाने की बात तो और भी बड़े झूठ हैं। उनके 'आर्थिक सुधार' के नाम पर सिर्फ़ अपने पक्षी धन बड़ाया जाएगा। सबको खुल कर देखना चाहिए कि ये वादे किसके खातिर हैं।
श्रीलंका की नई दिशा में कई संभावनाएं हैं। विभिन्न विचारधाराएं मिलजुल कर काम करने से ही सच्चा विकास संभव है। हमें सभी पक्षों को सुनना चाहिए और मिलकर समाधान खोजना चाहिए, ताकि स्थायी शांति और समृद्धि बनी रहे।
यदि नया राष्ट्रपति वित्तीय नीति में सुधार करना चाहते हैं, तो सबसे पहले टैक्स बेस को मजबूत करना आवश्यक है। इससे राजस्व बढ़ेगा और सामाजिक योजनाओं के लिए अधिक फंड उपलब्ध होगा। साथ ही, छोटे व्यापारियों को समर्थन देकर रोजगार सृजन किया जा सकता है। मैंने पहले कई देशों में ऐसे कदम देखे हैं, जो सफल रहे हैं।
डिसनायके की जीत ने कुछ लोगों को आशा दी है, पर यह भी याद रखना चाहिए कि राजनीति में धूल है। उनका वादा कि वे सभी समस्याओं को हल करेंगे, शायद थोड़ी अति आशावादी है। फिर भी, अगर वे वास्तविक कदम उठाते हैं तो यह परिवर्तन सार्थक हो सकता है।
ध्यान दें :)