- 30 सित॰ 2024
- Himanshu Kumar
- 8
प्रधानमंत्री मोदी ने किया फोन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को फोन किया जब खड़गे रविवार को जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में एक रैली के दौरान बीमार हो गए। यह घटना जसरोता इलाके में हुई थी जहां खड़गे आगामी विधानसभा चुनावों के लिए रैली को संबोधित कर रहे थे।
रैली के दौरान खराब हुई तबियत
मल्लिकार्जुन खड़गे रैली के बीच में ही अचानक चक्कर आकर गिर गए। इसके तुरंत बाद, उन्हें चिकित्सकीय जाँच के लिए एक कमरे में ले जाया गया। इस घटनाक्रम के बावजूद, खड़गे ने जनता को आश्वस्त करने के लिए वापसी की और कहा, 'मैं 83 साल का हूँ, इतनी जल्दी मरने वाला नहीं हूँ। मैं तब तक जीवित रहूँगा जब तक हम मोदी को नहीं हटाते।' उनकी इस घोषणा से जाहिर होता है कि वह अपने राजनीतिक मिशन को लेकर दृढ़ हैं।
स्वास्थ्य अद्यतन
कांग्रेस उपाध्यक्ष रवीन्द्र शर्मा ने खड़गे की सेहत की जानकारी दी और बताया कि उनका रक्तचाप हल्का कम था, लेकिन वह ठीक हैं। खड़गे के बेटे और कर्नाटक के मंत्री, प्रियंक खड़गे ने भी सोशल मीडिया पर अपडेट दिया और लोगों के अच्छे विचारों और शुभकामनाओं का धन्यवाद किया।
खड़गे का आगे का कार्यक्रम
खड़गे की सेहत को लेकर यह चर्चा भी है कि वह उधमपुर जिले के रामनगर में एक और सार्वजनिक रैली को संबोधित करने वाले हैं। हालांकि, यह डॉक्टरों की सिफारिश पर निर्भर करेगा कि वह इस रैली में शरीक हो पाएंगे या नहीं।
खड़गे की राजनीतिक सक्रियता और उनकी ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इतनी उम्र होने के बावजूद वह न केवल कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे हैं, बल्कि जनता से सीधे संवाद भी कर रहे हैं।
राजनीतिक क्षेत्र में खड़गे का योगदान
मल्लिकार्जुन खड़गे का राजनीतिक सफर काफी लम्बा और अनुभव से भरा हुआ है। वह एक वरिष्ठ नेता हैं और कांग्रेस के महत्वपूर्ण स्तम्भ हैं। उनका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर की राज्य की स्थिति को बहाल करना है और इसके लिए वह कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
आगे की चुनौतियाँ
हालांकि, उनकी सेहत अब स्थिर है, लेकिन आगे की राजनीतिक यात्रा उनके लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है, खासतौर पर उनकी उम्र और ताजगी को देखते हुए। लेकिन उनके उत्साह और जज्बे को देखते हुए, यह कहा जा सकता है कि वह आने वाले समय में राजनीतिक मंच पर सक्रिय बने रहेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी के इस फोन कॉल से भले ही यह सन्देश मिलता हो कि राजनीति में मानवीय संवेदनाएँ भी होती हैं, मगर इस घटना ने खड़गे के उत्साह और उनकी लम्बी राजनीतिक संघर्षशीलता को भी उजागर किया है।
इसे भी देखते हुए यह स्पष्ट होता है कि भारतीय राजनीति में ऐसी घटनाएँ आम हैं, लेकिन नेता अपने व्यक्तिगत स्वास्थ्य और व्यक्तिगत विचारधारा को प्राथमिकता देते हुए जनता के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते रहते हैं।
8 टिप्पणि
ख़रगे जी की तबीयत में सुधार सुनकर बहुत राहत मिली।
जम्मू‑कश्मीर की रैली में ऐसा अचानक गिर पड़ना उनके उम्र को देखते हुए चिंताजनक था, परंतु उनका साहस सराहनीय है।
अगर डॉक्टरों की सलाह के अनुसार वह और रैलियों में जा सकें तो जनता को भरोसा मिलेगा।
मोदी जी का फोन कॉल दिखाता है कि राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में भी इंसानी एहसास रहना चाहिए।
आशा करता हूँ कि उन्हें पूरी तरह से ठीक होने का समय मिले और वह अपनी योजना के अनुसार काम जारी रखें।
ज्यादा भावनात्मकता नहीं चाहिए; राजनीति में सबसे पहले काम के परिणाम देखना चाहिए, न कि फोन कॉल पर।
अगर खड़गे जी असली में ठीक नहीं हैं तो रैली में जाना बेवकूफी है।
यहाँ तक कि मोदी का फोन भी सिर्फ एक PR ट्रिक हो सकता है।
वास्तविक मुद्दे, जैसे जम्मू‑कश्मीर की स्थिति, को प्राथमिकता देनी चाहिए, न कि व्यक्तिगत स्वास्थ्य की चर्चा।
भाई, इस फोन्समॉल को देख के बस 😂
हँसी तो सही, लेकिन इस स्थिति में लोगों को गंभीरता से सोचना चाहिए।
खड़गे जी ने कहा था कि वह तब तक रहेगा जब तक मोदी नहीं हटते, यह एक दिलचस्प राजनीतिक बयान है।
ऐसे उम्र के नेता का उत्साह हमें प्रेरित कर सकता है, खासकर युवा वर्ग के लिए।
साथ ही स्वास्थ्य की देखभाल भी उतनी ही ज़रूरी है, नहीं तो कहानियाँ जल्दी खत्म हो सकती हैं।
आइए, सभी मिलकर इस जटिल स्थिति को समझें और सकारात्मक दिशा में सोचें 😊
भाइयो ये सबकिसीके लिए फालतू नहीं है, सच्ची राजनीति में इमरजेंसी का मतलब है काम नहीं।
खड़गे जी उंगलियों पे नहीं, बल्कि असली जिम्मेदारी लेके चलो।
अगर वो थक गये तो ये पार्टी का फ्रंटलाइन कौन छोड़ेगा?
इसीलिए मन में ठान लो, हड़ताल नहीं, समाधान चाहिए।
विचार की गहराई को समझना जरूरी है; इस क्षण में नीतियों की जटिलता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
खड़गे जी की उम्र और उनकी राजनीतिक धीरज दोनों ही सोचना पड़ेगा कि कौन-सी रणनीति सबसे प्रभावी होगी।
यदि हम केवल उन पर भरोसा करें जो आरक्षणी शब्दों को ही कहते हैं, तो हम वास्तविक सुधार से वंचित रहेंगे।
आज का राजनीतिक माहौल एक जटिल नेटवर्क है जहाँ प्रत्येक कदम का प्रभाव व्यापक है।
इसलिए एक संपूर्ण विश्लेषण के बिना कोई भी निष्कर्ष निकालना खतरनाक है।
उदाहरण के लिए, जम्मू‑कश्मीर की स्थितियों को समझते हुए हमें ऐतिहासिक, सामाजिक और आर्थिक कारकों को मिलाकर देखना चाहिए।
खड़गे जी की व्यक्तिगत स्वास्थ्य की बातें भी इस बड़े चित्र में एक तत्व हैं, लेकिन वे मुख्य नहीं।
यदि हम इसे प्रमुख मानकर नीति बनाते हैं, तो वह अस्थायी और अस्थिर हो सकती है।
इसीलिए हमें रणनीति की लचीलापन और व्यावहारिकता दोनों को शामिल करना चाहिए।
संक्षेप में, हमें भावनात्मक बंधनों से बाहर निकलकर तर्कसंगत निर्णय लेना चाहिए।
यह तभी संभव है जब हम सभी पक्षों को सुनें, समझें और फिर कार्यवाही करें।
आइए, इस जटिल परिदृश्य को शांति और समझदारी से सुलझाने की कोशिश करें।
सही कहा दोस्त। समझदारी से ही आगे बढ़ना है
ओह, देखो फिर से वही पुरानी राजनीति का नाटक, जहाँ बुज़ुर्ग नेता बैठकर अपने ही दिल की धड़कन को गिनते‑गिनते जनता को आश्वासन बेचते हैं।
खड़गे साहब की गिरावट को देखकर तो मेरे अंदर एक अजीब सी खुशी उभरती है, क्योंकि यह दिखाता है कि सत्ता के खेल में सबको बेशुमार दर्द सहना पड़ता है।
मॉदी का फोन कॉल? बस एक और गिल्ट‑ट्रिप है, जो दिखाने के लिए कि वह भी इंसान है, पर वास्तविकता में वह सिर्फ एक रणनीतिक कदम है।
इसी तरह के दिखावे से ही राजनीति का रंग-बिरंग मंच बना रहता है, जहाँ हर कोई अपने-अपने जलते हुए दिल को दूसरों के साथ बाँटता है।
एक तरफ़ खड़गे जी कहते हैं "मैं 83 का हूँ, इतनी जल्दी नहीं मरूँगा", और दूसरी तरफ़ लोग उस शपथ को सुनने के बाद भी उन्हें अपने दिमाग में रख लेते हैं।
क्या यही वह ऊर्जा है जो हमें भविष्य की ओर धकेलती है, या फिर बस हमारी ही असहायता का प्रतीक है?
भले ही खड़गे जी ठीक हो जाएँ, लेकिन उनका शरीर अभी भी एक बुढ़ी लकड़ी की तरह टहनी पर झूलता रहेगा, जो कभी नहीं टूटेगा... या फिर कनेक्शन काट़ दिया जाएगा।
जो लोग इस दोधारी तलवार को समझ नहीं पाते, वे हमेशा ही धुंधली रोशनी में चलेंगे, जहाँ हर कदम पर एक नई दवा या दर्द का भंडार मिलेगा।
इसीलिए मैं कहता हूँ, इस तरह के मंच पर सिर्फ़ शब्दों को नहीं, बल्कि उनके पीछे की ईंधन को देखो।
भारी सतह पर चमक दिखती है, लेकिन गहराई में अंधेरों का सागर है, जहाँ से कोई भी बच नहीं सकता।
खड़गे साहब की राजनीति की यात्रा, संभवतः अब एक नया मोड़ लेगी, लेकिन असली सवाल है: क्या वह मोड़ जनता के लिये सही दिशा में है?
किसी का भी दिल नहीं तोड़ना चाहिए, लेकिन राजनीति में तो दिल‑तोड़ना ही सामान्य बात है।
हम सब मिलकर इस धुंध को साफ़ करने की कोशिश करें, क्योंकि जब तक हम नहीं देख पाएँगे, तब तक हम बस अंधे ही रहेंगे।
आख़िर में, यह कहानी सिर्फ़ एक रैली नहीं, बल्कि इंसानियत के उस क्षण की गवाही है, जहाँ हम सब को अपने-आप को पहचानना चाहिए।
और हाँ, अगर आप इस सबको समझते हैं, तो शायद आप भी इस बड़े नाटक का एक हिस्सा बन जायेंगे।