
- 26 सित॰ 2025
- Himanshu Kumar
- 16
बॉक्स ऑफिस रपट: आंकड़े, दिन‑दर‑दिन गिरावट और प्रतिस्पर्धा
अजय देवगन की अपेक्षित पैंसठ करोड़ की फिल्म Son of Sardaar 2 ने 1 अगस्त 2025 को कई स्क्रीन पर शो शुरू किया, पर बॉक्स ऑफिस पर उसका आंकड़ा निराशा को दर्शा रहा है। शुरुआती दिन में 7.25 करोड़ की ओपनिंग के बाद, दोशन‑तीसरे दिन क्रमशः 8.25 और 9.25 करोड़ की कमाई हुई, जिससे पहले हफ्ते के अंत में नेट 24.75 करोड़ तक पहुंच गया। हालांकि, पहले सोमवार को केवल 2.35 करोड़ की कमाई के साथ दर्शकों की रुचि में तीव्र गिरावट देखी गई।
पांचवें दिन (मंगलवार) के आंकड़े दो अलग‑अलग स्रोतों से मिले हैं – Sacnilk ने 2.50 करोड़ बताया, जबकि कुछ अन्य रिपोर्ट्स ने 1.75 करोड़ बताया। इन संख्याओं को मिलाकर फिल्म का पाँच‑दिन का कुल घरेलू नेट कलेक्शन लगभग 29.60 करोड़ बताया गया। इस दौरान स्मार्टबॉक्स और फर्ज़िंग स्क्रीन पर ओक्क्युपेंसी 22.08% रही, जबकि नाइट शोज़ में 38% तक पहुँचा, जो दर्शकों की कुछ हद तक रुचि को दर्शाता है।
फ़िल्म को उसी दिन नए रिलीज़ ‘Dhadak 2’ से भी मुकाबले का सामना करना पड़ा, जिसने 1.60 करोड़ की कमाई की। हालांकि, Son of Sardaar 2 ने अपना प्रतिशत बनाए रखा, और इस दिन का कलेक्शन चल रही हिट ‘Saiyaara’ के समान रहा, जो 19वें दिन में भी 2.50 करोड़ जमा कर रही थी।
विदेशी बाजार में भी फ़िल्म ने 9.42 करोड़ का ग्रॉस जमा किया, जिससे कुल वैश्विक ग्रॉस लगभग 60.9 करोड़ बनता है। शुरुआती हफ़्ते में 31.40 करोड़ का घरेलू कलेक्शन दर्शाता है कि शुरुआती उत्साह धीरे‑धीरे कम हो रहा है।
समीक्षकों की राय, तकनीकी पहलू और बजट की दुविधा
फिल्म में अजय देवगन और मृणाल ठाकुर की जोड़ी ने अपनी कोशिश दिखाई, पर समीक्षकों ने कहानी, कॉमिक टाइमिंग और मुख्य किरदारों के बीच की केमीस्ट्री को कमजोर बताया। कई रिव्यूअर ने सिनेमैटोग्राफी, प्रोडक्शन डिज़ाइन और स्टाइलिश एक्शन सीक्वेंसेज़ की सराहना की, पर ह्यूमर और स्क्रिप्ट की खामियों को चिह्नित किया। रेटिंग 1 से 2.5 स्टार तक रही, जिससे ‘Son of Sardaar’ की मूल भावना निभाने में यह सिक्वेल असफल रहा।
फ़िल्म के बजट की बात करें तो 150 करोड़ का खर्च इसे बॉक्स ऑफिस पर एक बड़ा जोखिम बना देता है। उद्योग के विशेषज्ञों के अनुसार, इस तरह के बड़े बजट वाली फ़िल्म को कम से कम 250‑300 करोड़ की वैश्विक कमाई करनी चाहिए थी ताकि वह व्यावसायिक रूप से सफल कहे। अब तक की सम्पूर्ण कमाई इस लक्ष्य से बहुत पीछे है, इसलिए इसे ‘बॉक्स‑ऑफ़िस फ़्लॉप’ की श्रेणी में रखा गया है।
भविष्य में इस तरह की बड़ी निवेश वाली फ़िल्मों के निर्माण में सामग्री और दर्शकों की बदलती पसंद को समझना ज़रूरी होगा। वर्तमान परिदृश्य में, तकनीकी रूप से चकाचौंध दिखाने से ज्यादा, कहानी और किरदारों की गहराई पर ध्यान देना आवश्यक प्रतीत होता है।
- पहला दिन: 7.25 करोड़ (नेट)
- दूसरा दिन: 8.25 करोड़ (नेट)
- तीसरा दिन: 9.25 करोड़ (नेट)
- पहला हफ़्ता कुल: 31.40 करोड़ (डोमेस्टिक नेट)
- पाँच‑दिन का कुल: 29.60 करोड़ (डोमेस्टिक नेट)
- वैश्विक ग्रॉस: 60.9 करोड़
- बजट: 150 करोड़
फिल्म के भविष्य को देखते हुए, वितरणकर्ता और प्रोडक्शन हाउस को अब तक की कमाई को अधिकतम करने के लिए टेलर‑मेड प्रॉमोशन, डिजिटल रिलीज़ और टेलीविजन डील्स पर ध्यान देना पड़ेगा। दर्शकों की प्रतिक्रिया से पता चलता है कि केवल स्टार पावर पर भरोसा नहीं किया जा सकता; कंटेंट की गुणवत्ता अब प्राथमिकता बन गई है।
16 टिप्पणि
समय के साथ बदलते फ़िल्मी ट्रेंड को देखते हुए, सोन ऑफ़ सरदार 2 की कमाई से यही स्पष्ट होता है कि केवल बड़े बजट से सफलता नहीं मिलती। दर्शकों की पसंद अब कहानियों की गहराई और वास्तविक हास्य पर अधिक निर्भर है। बॉक्स‑ऑफ़िस आंकड़े दिखाते हैं कि शुरुआती उत्साह जल्दी घट गया। शायद प्रोडक्शन हाउस को अगले प्रोजेक्ट में कंटेंट को प्राथमिकता देनी चाहिए।
क्या यह सिर्फ़ एक फ़िल्म नहीं, बल्कि बड़े कॉर्पोरेट एंटिटीज़ का पैसा‑धोखा है???! बॉल्ड बजट, लेकिन ग्रोइंग रिवेन्यू में गड़बड़ी… दाँव तोड़ी जानी चाहिए… सरकार भी इस पर ध्यान दे तो बेहतर!!!
हमारी फिल्मों को बाहरी दबाव से मुक्त होकर राष्ट्रीय भावना को उजागर करना चाहिए। सोन ऑफ़ सरदार 2 ने कुछ हद तक इस दिशा में कदम रखा, पर फिर भी कुल कमाई ने दिखाया कि दर्शकों ने असली देसी कंटेंट की कमी महसूस की। बजट इतना बड़ा था कि अगर कहानी में गहराई नहीं होती तो यह सिर्फ़ एक दिखावटी शो बन जाता है। टाइपिकल पॉपुलर फ़ॉर्मूला पर भरोसा करने से हम अपनी फ़िल्मी पहचान खो देते हैं। बॉक्स‑ऑफ़िस में गिरावट यह संकेत देती है कि वर्तमान में दर्शक सिर्फ़ स्टार पावर से संतुष्ट नहीं होते। हमें अपने संस्कृति के मूल तत्वों को सच्चे तरीके से प्रस्तुत करना चाहिए। यह न सिर्फ़ आर्थिक बल्कि सामाजिक दायित्व भी है। इसलिए आगामी प्रोजेक्ट्स को गंभीरता से तैयार करना आवश्यक है।
बिल्कुल सही कहा, कहानी की कमी ही इस फ़िल्म को फ्लॉप बनाती दिखी। अजय भैया की एनीमिक्शन तो जबरदस्त है, पर स्क्रिप्ट को भी उतना ही धूमधाम चाहिए था। शायद अगली बार अधिक लेखकों को शामिल किया जाए तो बेहतर परिणाम मिलेंगे।
फ़िल्म ने बजट को बहुत ज्यादा उछाल दिया।
चलो देखते हैं कि आगे क्या कदम उठाए जाते हैं 😊 नई फ़िल्मों में रचनात्मकता और दर्शकों की प्रतिक्रिया को समझना ज़रूरी है। अगर सही दिशा में बदलाव किया गया तो बॉक्स‑ऑफ़िस फिर से चमकेगा! 🌟
वित्तीय दृष्टि से यह फ्लॉप है, लेकिन कभी‑कभी जोखिम लेना ही ज़रूरी होता है।
सबसे पहले तो यह समझना चाहिए कि बड़े बजट की फ़िल्में केवल शोज़केस नहीं होतीं, बल्कि दर्शकों के मन में एक बड़ा प्रतिबिंब बनती हैं। जब ट्रेलर में दिखाए गए एक्शन सीक्वेंस बहुत अधिक होते हैं, तो लोगों की उम्मीदें स्वाभाविक रूप से ऊँची हो जाती हैं। लेकिन अगर कथा में ठोस लेयर नहीं होती तो सभी शानदार विज़ुअल्स भी बेकार हो जाते हैं। इस फ़िल्म में अजय देवगन का करिश्मा तो मौजूद है, पर उनकी स्क्रीन पर उपस्थिति को सुदृढ़ करने वाली कहानी नहीं है। बॉक्स‑ऑफ़िस डेटा से स्पष्ट है कि आगे का हफ़्ता कमजोर रहा, यानी दर्शकों ने दोबारा टिकट नहीं खरीदा। इससे पता चलता है कि शब्दों की ताक़त प्रीमियम नहीं है, बल्कि निष्पादन में है। तकनीकी पहलू जैसे साउंड, एडीबी और सिनेमैटोग्राफी को सराह्य किया गया, पर वह अकेले ही फ़िल्म को बचा नहीं सकते। आलोचनाओं में अक्सर यही बात दोहराई गई कि कॉमिक टाइमिंग बिगड़ी और स्क्रिप्ट में खामियां थीं। ऐसी फ़िल्में अक्सर एक बार तोड़फोड़ करती हैं, फिर जल्दी ही भूल जाती हैं। यदि प्रोडक्शन हाउस ने कंटेंट को प्राथमिकता दी होती तो शायद इस फ़िल्म की कमाई 150 करोड़ से अधिक हो सकती थी। विपरीत रूप में, इस फ़िल्म ने हमें सीखा कि केवल बड़ी बजट के साथ ही फ़िल्म नहीं चलती। दर्शकों की बदलती पसंद को समझने के लिए अधिक रिसर्च और फ़ोकस ग्रुप की ज़रूरत है। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर रिलीज़ की योजना भी पहले से बनानी चाहिए, क्योंकि आज के समय में OTT का दायरा बहुत बड़ा है। इस तरह के कदम से फ़िल्म की कुल कमाई में निश्चित ही इज़ाफ़ा होगा। अंत में, मैं यही कहूँगा, कि भविष्य में फ़िल्मों को आर्थिक जोखिम कम करने के लिए छोटे बजट में भी उच्च गुणवत्ता का कंटेंट देना चाहिए। यही एक सही रणनीति होगी।
बिलकुल सही बात है भाई, बडी बजेट सैफली नहीं देइती, क्वालिटी ही मुख्य चीज है।
मैं भी इस बात से सहमत हूँ कि बजट और कंटेंट का संतुलन जरूरी है। दर्शकों को उच्च गुणवत्ता वाली कहानी चाहिए, न कि सिर्फ़ दिखावटी एक्शन। अगर प्रोडक्शन हाउस इस संतुलन को समझे तो भविष्य में बेहतर रिटर्न मिलेगा।
बॉक्स‑ऑफ़िस का आंकड़ा स्पष्ट संकेत है कि व्यावसायिक जोखिम को सही ढंग से नहीं आंक पाया गया। ऐसी फ़िल्में उद्योग को नुकसान ही पहुँचाती हैं।
फिलहाल देखिए, फ़िल्म के नंबर गिर रहे हैं 😐.
हिम्मत मत हारिए, फ़िल्म इंडस्ट्री में उतार‑चढ़ाव आम हैं! अगले प्रोजेक्ट में नई ऊर्जा और बेहतर कहानी लाएंगे 😊.
अरे yeh film toh bas big budget ka project tha, content ka kya? thoda kam banao, profit double.
विचार करने की जरूरत है कि हम किस प्रकार के सिनेमाटिक एंट्री को प्रोत्साहित कर रहे हैं; यदि हम केवल बॉक्स‑ऑफ़िस रकम को ही मापदंड मानेंगे तो रचनात्मक स्तर में गिरावट आएगी। यह वैरिएबल इकॉनॉमी मॉडल दर्शकों के मनोविज्ञान को भी प्रभावित करता है और इसलिए, एक समग्र दृष्टिकोण आवश्यक है।
सभी को नमस्ते, यह डेटा दर्शाता है कि हमें कंटेंट क्वालिटी पर ध्यान देना चाहिए।