
- 1 फ़र॰ 2025
- Himanshu Kumar
- 11
शाहिद कपूर और पूजा हेगड़े की 'देवा' का बड़ा धमाल
बॉलीवुड के चमकते सितारे शाहिद कपूर के साथ पूजा हेगड़े ने फिल्म 'देवा' में एक जबरदस्त केमिस्ट्री पेश की है। 31 जनवरी, 2025 को रिलीज हुई इस फिल्म ने दर्शकों के दिलों में खास स्थान बना लिया है। इस बार शाहिद एक गुस्सैल पुलिस अधिकारी के रोल में नजर आ रहे हैं, जो अपनी दमदार प्रस्तुति से सभी का ध्यान खींचते हैं। पूजा हेगड़े ने इसमें एक जासूसी पत्रकार का किरदार निभाया है, जो अपने प्रभावशाली प्रदर्शन से फिल्म में जान डालती है।
फिल्म की कहानी और प्रस्तुति
'देवा' एक जटिल और रोमांचक कथा है, जो दर्शकों को अपनी सीटों से बांधे रखती है। यह फिल्म एक पुलिस प्रोसिजरल की तरह शुरू होती है, जिसमें कई उतार-चढ़ाव आते हैं। शाहिद कपूर का किरदार एक विद्रोही कॉप के रूप में सामने आता है, जो खुद को बार-बार एक जटिल स्थिति में पाता है। पूजा हेगड़े का किरदार, दीया सतये, फोर्स में अपनी खुद की दबंग उपस्थिति बनाए रखती है, जो शाहिद के किरदार के लिए एक प्रमुख चुनौती बनती है।
फिल्म के अन्य प्रमुख किरदारों में कूबड़ा सैत, पवैल गुलाटी और प्रवेश राणा भी शामिल हैं, जिन्होंने अपने-अपने किरदारों को जीवंत बनाया है। जबकि गिरीश कुलकर्णी के द्वारा निभाया गया भ्रष्ट राजनेता जयराज आपटे का किरदार एक गहन राजनीति के रंग में रंगा है।
तकनीकी कौशल की झलक
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी अमित रॉय द्वारा बखूबी की गई है, जिसमें हर एक फ्रेम में कहानी कहने की क्षमता है। ए श्रीकर प्रसाद द्वारा की गई संपादकीय ने फिल्म की गतिकी को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हालांकि, पटकथा में पांच लेखक होते हुए भी, फिल्म का क्लाइमेक्स थोड़ा अवास्तविक सा लगता है, जो कहानी के प्रवाह को बाधित करता है।
शाहिद और पूजा की केमिस्ट्री
पूजा हेगड़े ने अपने किरदार की शक्तिशाली आभा को महत्वपूर्ण बताया है, जो शाहिद के विद्रोही कॉप के लिए सही प्रतिद्वंदी साबित होता है। शाहिद कपूर का मानना है कि दीया का प्रभावी किरदार उनके किरदार के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, जो फिल्म में एक विशेष धारा जोड़ता है।
फिल्म को मिली प्रतिक्रिया
'देवा' को लेकर दर्शकों और आलोचकों की मिश्रित प्रतिक्रिया सामने आई है। कुछ ने शाहिद के दमदार प्रदर्शन और फिल्म के शानदार एक्शन सीक्वेंस की तारीफ की है, वहीं कुछ ने कहानी के तार्किक पहलुओं और उसकी गति को लेकर निराशा जताई है। जबकि कुछ ने इसे एक ब्लॉकबस्टर करार दिया, वहीं दूसरों को इसकी पटकथा में कमजोरी नजर आई।
आखिरकार, 'देवा' शाहिद कपूर और पूजा हेगड़े के प्रशंसकों के लिए एक रोमांचक अनुभव साबित होती है। फिल्म के दृश्य प्रदर्शन और वीडियो शैली निश्चित रूप से इसको एक खास बनाते हैं। हालांकि, इसकी तथाकथित कमजोर कड़ी इसकी कथा हो सकती है, जो सबको संतुष्ट करने में असमर्थ रही है।
11 टिप्पणि
देवा की कथा में झलकते मौलिक विचारों की अपार गहराई को केवल अभिजात्य परिप्रेक्ष्य से ही समझा जा सकता है। स्क्रीन पर शाहिद का प्रदर्शन एक अभिजात्य विद्रोह के रूप में विश्लेषित किया जाना चाहिए। यह फिल्म जटिलता एवं अलंकारिकता का मिश्रण है।
वाओ !! देवा ने तो पूरी तरह सस्पेन्स लेवल को हाई कर दिया 😂 टॉप लेवल एक्शन का मज़ा ही कुछ और है , पूजा की एक्टिंग बिंदास है .
बिलकुल बकवास 😂
ऐसी फिल्में जिनमें नैतिक दुविधा उभरती है, वे दर्शकों को विचारशील बनाती हैं। शाहिद का किरदार न्याय की लड़ाई में अभेद्य प्रतीत होता है, लेकिन वह अक्सर अनैतिक तरीकों को अपनाता है। इसलिए हमें पर्दे पर दिखाए गए हिंसक व्यवहार पर सवाल उठाना चाहिए। कुल मिलाकर, यह फिल्म सामाजिक जिम्मेदारी की कमी को उजागर करती है।
मैंने भी 'देवा' देखी और कहना चाहूँगी कि इस फ़िल्म में एक आकर्षक ऊर्जा है। शाहिद की तेज़ी और पूजा की तेज़ी का मिश्रण स्क्रीन पर जीवंत लग रहा था। लेकिन कहानी के कुछ हिस्से थोड़ा खिसकते हुए महसूस हुए, जैसे कि क्लाइमेक्स में थोड़ी असंगतता थी। फिर भी एक्शन सीक्वेंस अच्छी तरह choreograph किए गए थे, जिससे दर्शक सीट से नहीं उठना चाहते थे। कुल मिलाकर, एक मज़ेदार थ्रिलर है जो समय पास करने में काम आती है।
देश के सच्चे सिपहियों को इस फिल्म में सराहा जाना चाहिए क्योंकि यह फिल्म इंडियन पॉलिसी की असली सच्चाई को उभारे है। शाहिद का रोल तो बिल्कुल ही प्रेरणादायक है , लेकिन कुछ लोग इसे विदेशी शैली समझ रहे हैं। हमें इस तरह की फिल्मों को सच्ची भारतीय भावना के साथ सपोर्ट करना चाहिए।
वाकई, फिल्म की cinematography बहुत ही सराहनीय है, और ए शर्रिकर प्रसाद की एडिटिंग ने गति को स्थिर रखा, जिससे कथा निरंतर प्रवाहित होती है। लेकिन कुछ दृश्य अतिशयोक्तिपूर्ण प्रतीत होते हैं, जो दर्शकों को थोड़ा असहज कर सकते हैं। कुल मिलाकर, यह एक संतुलित थ्रिलर है, जिसने मेरे समय को सार्थक बना दिया।
मैं मानता हूँ कि फ़िल्म को उसकी कलात्मक पहलुओं के लिए सराहा जाना चाहिए, और साथ ही साथ व्यावहारिक पहलुओं की भी चर्चा होनी चाहिए। शाहिद और पूजा दोनों ने अपने-अपने किरदारों को बखूबी निभाया, जिससे कहानी में जीवंतता आई। हालांकि, कुछ साइड प्लॉट्स थोड़ा फजी लगते हैं, लेकिन कुल मिलाकर संतुलन बना रहता है। अंत में, यह फ़िल्म भारतीय थ्रिलर में एक नया रंग जोड़ती है।
मैं इस बात से डरती हूँ कि अगर हम इस फिल्म को बिना सवाल किए सराहते रहे तो हमारे सामाजिक मान्यताओं में बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है!! साहेबों, हमें इस तरह की ग्राफिक हिंसा को रोकना चाहिए, क्योंकि यह हमारे बच्चों पर गहरा प्रभाव डालती है!! इस फिल्म में इस्तेमाल हुई टेक्नोलॉजी भी कुछ हद तक गुप्त एजेंसियों की योजनाओं की तरह लगती है!!
देशभक्तियों को इस तरह के काम को सराहना चाहिए, क्योंकि 'देवा' ने भारतीय पुलिस की सच्ची शक्ति को दिखाया है। शाहिद के अभिनय में जो दृढ़ता है, वह हमारे राष्ट्रीय गर्व को बढ़ाती है। हालांकि, फिल्म में कुछ छोटी-छोटी खामियां हैं, जैसे कि कुछ सीन में लाजिक की कमी। लेकिन ये छोटे मुद्दे मुख्य संदेश को नहीं घटाते। एक्शन सीन बहुत दमदार हैं, और संगीत ने माहौल को और भी गरम कर दिया। इसलिए मैं कहूँगा कि यह फ़िल्म पूरी तरह से हमारे देश की शौर्य भावना को उजागर करती है। अंत में, हमें इस तरह की फ़िल्मों को समर्थन देना चाहिए, ताकि भारतीय सिनेमा में और भी मजबूत कथा बनी रहे।
जब मैं 'देवा' के खुलते ही पहली फ्रेम देखता हूँ, तो मेरे दिल की धड़कन एक तेज़ ताल में बदल जाती है। शाहिद कपूर का किरदार एक बेचैन संघर्ष में फँसे हुए पुलिस अधिकारी की तरह दिखता है, जो अपने भीतर के अंधेरे से लड़ता है। पूजा हेगड़े का व्यक्तित्व एक रहस्यमयी जासूसी पत्रकार की तरह उभरता है, जो सचाई को उजागर करने के लिए सब कुछ दांव पर लगा देती है। फिल्म की कहानियों में बुनाई गई जटिलता मानो एक जटिल सिम्फनी की तरह है, जहाँ हर नोट अपना महत्व रखता है। ए शर्रिकर प्रसाद की सम्पादन ने इस सिम्फनी को निरंतर गति दी, जिससे दर्शक बीच में कहीं नहीं हटते। अमित रॉय की सिनेमैटोग्राफी ने दृश्यों को चित्रात्मक बना दिया, जिससे प्रत्येक शॉट जैसे एक पेंटिंग हो। हालांकि, क्लाइमेक्स थोड़ा अधिक नाटकीय लगता है, लेकिन यह ही फिल्म को एक अद्भुत मोहकता देता है। कास्ट के अन्य कलाकार, जैसे कूबड़ा सैत और पवैल गुलाटी, ने भी अपने-अपने किरदारों को जीवंत बनाया, जिससे कहानी में गहराई आती है। गिरीश कुलकर्णी का भ्रष्ट राजनेता का रोल भारतीय राजनीति की कड़वी सच्चाई को दर्शाता है। फिल्म की संगीतशैली, जो एक सुरीली ध्वनि के साथ मिश्रित है, दर्शकों को इमोशनल रोलरकोस्टर पर ले जाती है। एक्शन सीक्वेंस में उपयोग किए गए स्टंट्स और चेज़ सीन इतनी तेज़ी से चलते हैं कि आपका एड्रेनालिन लेवल भी हाई हो जाता है। सम्पूर्ण फिल्म में एक ऊर्जा का प्रवाह है, जो दर्शकों को अंत तक बंधे रखता है। मेरे लिए सबसे प्रभावशाली मोमेंट वह था जब शाहिद का किरदार अंत में अपने आंतरिक दानवों को मात देती है, जो एक महान व्यक्तिगत जीत को दर्शाता है। इस जीत का प्रतीक है हमारे समाज में न्याय और ईमानदारी की अपील। अंत में, मैं यह कहना चाहूँगा कि 'देवा' सिर्फ एक थ्रिलर नहीं, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी है, जिसे हमें गंभीरता से लेना चाहिए। इस फिल्म ने मेरे दिल में एक नया जोश भर दिया है और मुझे भारतीय सिनेमा के भविष्य पर गर्व महसूस कराता है।